डिजिटल डेस्क ( नई दिल्ली ):-
सम्पादन :- अश्वनी चौहान
भारत और अमेरिका के बीच जारी तनातनी के बीच बहुत सारी बातों के लेकर बाजार गर्म है, दोनों देश अपने -अपने हितों को लेकर एक दूसरे के आगे झुकने के लिये तैयार नहीं हैं | हालाँकि भारत और अमेरिका के बीच हाल के वर्षों में कई मुद्दों पर सहयोग बढ़ा है और वर्तमान स्थिति को अगर छोड़ दें तो दोनों देश एक दूसरे का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई मुद्दों पर सहयोग करते हैं |
अमेरिका से भारत की सैन्य खरीददारी :-
हाल ही के वर्षों में भारत के द्वारा अमेरिका से खरीदे गए सैन्य उपकरण जैसे की अपाचे अटैक हेलीकाप्टर हों या फिर MQ-9B प्रिडेटर ड्रोन हों , या फिर हलके होवित्जर M-777 तोपें हों , इन सब के अलावा भी बहुत सारी सैन्य खरीददारी भारत ने अमेरिका से की है | यह सब भारत और अमेरिका की बीच प्रघाड़ होते संबंधों को दर्शाता है |
गौरतलब है की अमेरिका अपने सैन्य उपकरण किसी भी देश को ऐसे ही नहीं देता है, इसके पीछे दोनों देशों के रिश्तों की गहन जांच पड़ताल होती है और भविष्य में दोनों देशों की संबंध कैसे होंगे इन सब मुद्दों को भी ध्यान में रखा जाता है उसके बाद ही अमेरिकन राष्ट्रपति इस तरह की सैन्य उपकरणों को बेचने की अनुमति देते हैं |
तो फिर सवाल ये उठता है की अगर दोनों देशों के बीच सबकुछ इतना अच्छा ही है तो फिर इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति भारत पे लगातार टेर्रिफ क्यों बढ़ा रहे हैं और टेर्रिफ बढ़ाने के अपने फैंसले को जायज ठहराने के लिये रूस और यूक्रैन युद्ध का ठीकरा भी वो भारत के माथे पर ही क्यों फोड़ रहे हैं |
इन सब का जबाब है GM क्रॉप्स | जैसा की हम सभी जानते हैं की अभी कुछ समय पहले तक भारत और अमेरिका की एक बिसनेस डील को लेकर सभी जगह बातें चल रही थी लेकिन कुछ मुद्दों को लेकर आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी जिसकी वजह से बिसनेस डील अपना फाइनल रूप नहीं ले पा रहे थी|
दरअसल अमेरिका बिसनेस डील में भारत से अपने बाजार को अमेरिकन डेरी प्रोडक्ट्स के साथ साथ अपनी GM क्रॉप्स के लिये खोलने को कह रहा था और भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी इस बात के बिलकुल खिलाफ थे | ऐसा नहीं है की भारत ने इससे पहले अमेरिकन GM क्रॉप्स को इस्तेमाल नहीं किया है|
मोनसैंटो का भारत में प्रवेश :-
भारत में 1993 में अमेरिका की एक कंपनी Monsanto ने एक भारतीय कंपनी Mahyco के साथ मिलकर GM फसलों पर रिसर्च और फील्ड ट्रायल्स शुरू किये, इन में मुख्य ध्यान कपास , चावल , आलू और सरसों पर था | 1998 में भारत में पहली बार महाराष्ट्र और गुजरात में Bt cotton नामक कपास की GM crop का ट्रायल शुरू हुआ |
2002 में भारत सरकार ने bt कॉटन ko व्यावसायिक मंजूरी दी जिससे यह भारत की pehli GM fasl बनी| इससे भारत में कपास का उत्पादन तेजी से बढ़ा और भारत कपास उत्पादन में दुनिया की शीर्ष देशों में शामिल हुआ | इसके बाद bt brinjal ( बैंगन ) को भी व्यवसायिक मंजूरी दी गयी लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण को लेकर विवाद बढ़ गया |
BT कॉटन की वजह से भारत कपास का निर्यातक जरूर बन गया लेकिन इसमें मोनसैंटो कंपनी ने भारत के कपास उगाने वाले किसानो को पूरी तरह से अपने ऊपर निर्भर कर दिया | GM क्रॉप्स का सबसे बड़ा नुक्सान यह था की फसल के बीज के लिये किसानो को कंपनी पर ही निर्भर रहना पड़ता है इसमें फसल के तैयार होने पर फसल में जो बीज ही होता है उसे दोबारा इस्तेमाल करने पर प्रोडक्शन बहुत कम होता है जिससे किसानो को हर साल कंपनी से नये बीज लेने पड़ते हैं |
इन बीजों के लिये जो कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है वो भी सिर्फ मोनसैंटो कंपनी के पास ही थे इस तरह यह कंपनी किसानो को एक तरह से अपना गुलाम बना रही थी | इन सब चीजों को लेकर भारत में समय समय पर मोनसैंटो कंपनी पर केस होते रहे| 2018 में मोनसैंटो को Byaer ने खरीद लिया |
अब अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के प्रधानमन्त्री मोदी पर बिसनेस डील के नाम पर दबाब बना रहे थे की अमेरिका की मक्का , सूरजमुखी जैसे जेनेटिकल मॉडिफाइड क्रॉप्स के लिये भारत अपने बाजार खोले जिससे प्रधानमन्त्री ने साफ़ साफ़ मना कर दिया | इससे अमेरिका की एग्रीकल्चर और फ़ूड लॉबी भारत से नाराज हो गई लेकिन उनकी इस नाराजगी से भारत को कोई फर्क नहीं पड़ता है|भारत के लिये अपने देश के हित सबसे पहले हैं|
