आज बेशक इजराइल और ईरान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं और एक दुसरे को खत्म करने पर आमादा है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इन दोनों देशों के बीच दुश्मनी जैसे कोई बात नहीं थी , बात है सन 1953 की जब ईरान में उस वक़्त के प्रधान मंत्री मोहम्मद मोसद्देह को ईरान के आर्मी ने तख्ता पलट करके गद्दी से हटा दिया था , उस वक़्त ईरान के आर्मी को अमेरिका का सपोर्ट था , तख्ता पलट के बाद ईरान के गद्दी पर शाह मोहम्मद रेज़ा पहलवी को बैठाया गया जो की पूरे तरह से अमेरिका और ब्रिटैन को सपोर्ट करते थे| टर्की के बाद ईरान दूसरा मुस्लिम बहुल देश था, जिसने इजराइल को एक संप्रभु देश के रूप में मान्यता दी थी| 1979 में ईरान में हुए इस्लामिक रेवोलुशन के बाद वहां सत्ता से पहलवी को हटा कर कट्टर पंथी सरकार ने सत्ता संभाल ली, और यहाँ से ही इजराइल और ईरान के बीच रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो गई| इसके बाद ईरान और इजराइल 1985 तक एक दूसरे के साथ छदम युद्ध में भी लगे रहे| 1991 में सोवियत यूनियन के बिघटन के बाद इन दोनों देशों में तल्खियां और ज्यादा बढ़ने लगी,1992 में अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires में इजराइल की ebessay पर हुआ हमला हो या फिर 1994 में AMIA बॉम्बिंग हो, इन सब में ईरान के proxies कहे जाने वाले संघटनो जैसे की हेज़बोल्लाह , हौथिस की एक्टिव इन्वॉल्वमेंट ने आग में घी डालने का काम किया|
यहाँ अमेरिका और उसके इजराइल के साथ संबंधों को जानना भी बहुत जरूरी हो जाता है , क्योंकि नाटो के बाहर सिर्फ इजराइल ही एक मात्र ऐसा देश है जिसे अमेरिका अपने सबसे अधिक आधुनिक हथियार देता है, ये सब उस स्थिति में है जब अमेरिका और इजराइल के बीच कोई औपचारिक रक्षा समझौता नहीं है, फिर भी अमेरिका के इजराइल के साथ इस तरह खड़े होने के कई कारण है|
. मध्य पूर्व में प्रभाव :- अमेरिका मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिये और चीन और रूस के प्रभाव को कम रखने के लिये इजराइल के प्रयोग करता है, अमेरिका और इजराइल दोनों लोकतांत्रिक मूल्यों को साझा करते हैं और यह साझा मूल्य दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत बनाए रखते हैं , हालाँकि दोनों देश कई बार कई मुद्दों पैर अलग अलग राइ भी रखते हैं जिससे दोनों के बीच कुछ मतभेद भी हो जाते हैं, ईरान का परमाणु कार्यक्रम इन्ही मुद्दों में एक हैं जिसमे दोनों देशों के बिचार अलग हैं , इजराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व पर खतरा मानता हैं जिसमे वो काफी हद तक सही भी हैं और इससे सैन्य तरीके से खत्म करना चाहता हैं , जबकि अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिये कूटनीटिक और आर्थिक दबाब पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है|
आज इजराइल और ईरान के युद्ध को शुरू हुए 9 दिन हो चुके हैं , इस बीच दोनों देशों ने एक दूसरे पर कई तरह के मिसाइल्स से हमले किये जिससे अभी तक ईरान में 639 लोग ( ईरान की सरकार के द्वारा जारी डाटा ) मारे जा चुके हैं और वहीँ इजराइल में भी 24 लोगों ने अपने जान गबाई है, इसके अलावा ईरान में 1329 लोग घायल हुए हैं और इजराइल में अभी तक 50 लोग इन हमलों में घायल हुए हैं | इसरायली मीडिया में छपी में रिपोर्ट के अनुसार ईरान के साथ इस युद्ध में अभी तक इजराइल को हर रोज 6000 करोड़ ( भारतीय रुपये) खर्च करने पड़ रहे हैं, इसके अलावा पिछले साल से चले आ रहे इजराइल हमास युद्ध में भी इजराइल अभी तक 67 बिलियन U.S. डॉलर्स ( तकरीबन 5.59 लाख करोड़ भारतीय रुपये ) अभी तक खरच कर चुके हैं , इससे इजराइल की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ रही है, हालाँकि पहले से ही ढेर सारे प्रतिबंध झेल रहे ईरान की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है , अब ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा की ये दोनों देश अपनी बिगड़ती आर्थिक स्थति के कारण युद्ध रोकेंगे या फिर एक दूसरे को ख़त्म करने के नीयत से ही आगे लड़ते रहेंगे , दोनों देशों के पास इस लड़ाई को रोकने या जारी रखने के अपने अपने कारण है लेकिन इससे नुक्सान दोनों देशों के आम जनता को उठाना पड़ रहा है |
इजराइल – ईरान युद्ध के भारत पर प्रभाव :- इजराइल और ईरान दोनों ही देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध है और इन दोनों देशों के बीच युद्ध भारत के पक्ष में बिलकुल भी नहीं है, इजराइल भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में एक बहुत ही अहम साझेदार है और भारत के साथ हर मुसीबत के वक़्त खड़ा रहता है , इसके साथ ही भारत इजराइल से हीरे , कृषि उपकरण को भी आयात करता है, वहीं ईरान के चाहबहार पोर्ट को भारत 550 मिलियन U.S डॉलर की लागत से develop कर रहा है जिससे की भारत पाकिस्तान को बिना इस्तेमाल किये अपना सामान सेंट्रल एशिया की देशों जैसे की (अफगानिस्तान ,कजाकिस्तान) और अन्य देशों तक पहुंचा पाए | इसके अलावा ईरान भारत की बासमती चावलों का भी एक बहुत बड़ा आयतक देश है इस युद्ध की वजह से भारत के चावल व्यापारिओं को भी काफी नुक्सान उठाना पड़ रहा है, थोक बाजार में भी 3900 रुपये पर क्विंटल बिकने वाला बासमती चावल 3200 रुपये पर क्विंटल पर आ चुका है, और अगर ये युद्ध इस तरह ही आगे बढ़ता रहा तो बासमती चावल के रेट और भी गिरने के आसार हैं | भारत अपनी एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिये ईरान से भी काफी मात्रा में कच्चा तेल , प्राकर्तिक गैस को इम्पोर्ट करता है जो की इस युद्ध के वजह से महंगी होने के पूरे आसार है, इसके अलावा कई तरह के ड्राई फ्रूट्स , यूरिया , औधोगिक रसायन , पेट्रोकेमिकल उत्पाद , मिनरल फ्यूल्स, को भी भारत ईरान से आयात करता है |
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