samachaartime.com

भारतीय और उनकी मेन्टल हेल्थ 1 फैक्ट चेक |

डिजिटल डेस्क ( नई दिल्ली ):-

published by  :-  अश्वनी चौहान

साल 2017 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में यह सामने आया की भारत में हर 7 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी रूप से मानसिक विकारों से पीड़ित है , इसका मतलब यह है की भारत की कुल आबादी के 15 प्रतिशत लोग इन मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं ,यानी तकरीबन 20 करोड़ लोग | यह आबादी कई देशों की कुल आबादी से भी बहुत ज्यादा है |

यह रिपोर्ट 2017 की है और अब 2025 चल रहा है, इस बीच दुनिया एक महामारी के दौर देख चुकी है , उस दौर में finacial  loss का ध्यान तो सबने रखा लेकिन मेटल हेल्थ पर उसका कितना बुरा प्रभाव पड़ा उसके बारे में अभी studies चल रही हैं |

छोटे होते परिवार , खत्म होते रिश्ते , भौतिकबाद के पीछे भागते लोग,  समस्या को खत्म करने के बजाए सिर्फ बढ़ाने का ही काम कर रही है | राष्ट्रीय अध्यनों से पता चला है की ग्रामीण क्षेत्रों के तुलना में मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की संख्या शहरी क्षेत्रों में लगभग दोगुनी है |

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ 6.9 % लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं वहीँ शहरी क्षेत्रों में तकरीबन 13.5 % लोग इस समस्या से ग्रसित हैं , हालाँकि  जानकारों के मुताबिक यह संख्या इससे कहीं अधिक भी हो सकती है |

भारतीयों में मानसिक समस्याओं के मुख्य कारण:- 

भारत आबादी के हिसाब से दुनिया का पहले नंबर का देश है और क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का 7 वां बड़ा देश , जाहिर सी बात है रिसोर्सेज लिमिटेड हैं और आबादी जयादा , कहीं न कहीं बच्चों को बचपन से ही जाने अनजाने हम सब एक अंधी अनजानी दौड़ में लगा देते हैं बिना ये जाने की बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा |

भारत के सामने कई देशों के उदाहरण हैं जहाँ स्कूल्स में मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान दिया जाता है जैसे की फ़िनलैंड , स्वीडन , ब्रिटेन| इनमें फ़िनलैंड की शिक्षा प्रणाली मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की लिये जाने जाती है |

फ़िनलैंड की शिक्षा प्रणाली की कुछ मुख्य बिंदु :- 

. कोई मानकीकृत परीक्षण नहीं :- फ़िनलैंड में छात्रों पर मानकीकृत परीक्षणों का बहुत कम प्रयोग किया जाता है और छात्रों का मूल्यांकन शिक्षकों के द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया जाता है |

. प्रैक्टिकल लर्निंग :- फ़िनलैंड में व्यावहारिक शिक्षा पर जोर दिया जाता है और छात्रों को व्यावहारिक दुनिया की स्थितियों में ज्ञान लागू करने की लिये प्रोत्साहित किया जाता है |

. कम होमवर्क :- finland  में छात्रों को बहुत कम होमवर्क दिया जाता है और उन्हें खेलने ,आराम करने और अपने शौक पूरे करने की लिये प्रोत्साहित किया जाता है |

एक ओर जहाँ फ़िनलैंड एजुकेशन सिस्टम दुनिया का बेहतरीन सिस्टम होने के साथ साथ मुफ्त में शिक्षा प्रदान करता है वहीँ अपने आप को विश्व गुरु कहने वाले  भारत के एजुकेशन सिस्टम में सिर्फ रट्टा मार प्रथा पर जोर दिया गया है मुफ्त शिक्षा के नाम पर सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली स्तरहीन शिक्षा है जिसे देने के लिये उपयुक्त संख्या में शिक्षक भी उपलब्ध नहीं हैं |

युवाओं के लिये रोजगार के कम मौके :-

भारत की जरूरत से ज्यादा आबादी होने के कारण युवाओं को सुरक्षित भविष्य के लिये स्थाई रोजगार की कमी होना भी उनके  मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव का एक प्रमुख कारण है , जहाँ एक ओर मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों के लिये सरकारी नौकरी के रूप में एक सुरक्षित भविष्य चाहते हैं|

एक सच्चाई ये भी है के भारत सरकार के द्वारा अपने ही केंद्रीय बिभागों में स्वीकृत 40 लाख पोस्ट्स में  9 लाख से अधिक खाली चल रही हैं , अगर राज्य सरकारों में खाली चल रही पोस्ट्स को भी इन में जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा कई गुना बढ़ जाएगा |

आर्थिक और सामजिक सुरक्षा का अभाव :- 

एक बेरोजगार युवा के साथ साथ बुजुर्ग होती आबादी में असुरक्षा का भाव किसी भी देश के लिये शुभ संकेत नहीं हैं , अगर विकसित राष्ट्रों के बात की जाए तो वहां बच्चों के लिये school से लेकर यूनिवर्सिटीज  तक मुफ्त में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा  के साथ 60 साल से अधिक उम्र के अपने नागरिकों के लिये फ्री medical फैसिलिटीज की सुविधा उपलब्ध होती है जिससे किसी भी स्थिति में इनमे असुरक्षा का भाव न आ पाए|

दमनकारी कार्य संस्कृति  :- 

भारत के निजी सेक्टर में काम करने वाले लोगों से अगर बातचीत की जाए तो एक बात जो साफ़ साफ पता चलती  है की उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक लोग अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हैं, और इसकी मुख्य वजह offices में दमनकारी संस्कृति का होना भी एक बड़ी बजह है , लेबर लॉज़ का पूरी तरह लागू न होना , अपने अधिकारों की प्रति अज्ञानता इसमें आग में घी डालने  का काम करती है |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Exit mobile version